प्रथम बार महाराष्ट्र के वाहे गांव में जैन संतों का हुआ आगमन
किंतु आज गांववासी उस बालमुनि को देखने के लिए उत्सुक थे जिसका सम्बन्ध इस भूमि से जुड़ा हुआ था। बालमुनि और उनके सांसारिक पारिवारिकजन भी अत्यंत हर्षित थे क्योंकि गुड़ी पड़वा यानि नव वर्ष के दिन अपने दादा गुरु जी, गुरु जी और अन्य साधु साध्वीवृन्द सहित दीक्षा के बाद प्रथम बार पैतृक गांव में पधारना हो रहा था।
गाँव में रहने वाले सभी धर्म जाति के लोग जैन संतों को निहारने और स्वागत करने के लिए सुबह से ही अपलक पांवड़े बिछा कर प्रतीक्षा कर रहे थे।
गुरुदेव ने कहा कि धन्य हुआ ये गांव और यहां की भूमि जहाँ पर आज संत पधारे हैं। जहां संतो ने चरण न पड़ें वो स्थान श्मशान के समान हैं और जिस भूमि पर संत पधारें वो भूमि पवित्र तीर्थ बन जाती है।
गुरुदेव ने गांव वासियों को शाकाहार अपनाने और मद्यपान, व्यसन आदि त्याग करने की प्रेरणा दी। गुरुदेव ने कहा कि बालमुनि का अपने सांसारिक पैतृक गांव में अनायास आगमन एक संयोग ही है। परिवारिकजनों ने पारंपरिक रीति से संतों का स्वागत किया और काम्बली ओढ़ाई। पगलिया करवाया।
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