* कल्याणक तीर्थोद्धारक, शासन दिवाकर, पंजाब मार्तण्ड, गच्छाधिपति शांतिदूत जैनाचार्य श्री मद् विजय नित्यानंद सूरि जी म.सा, तप केसरी तपस्वी सम्राट आचार्य भगवन श्री मद् विजय वसंत सूरि जी म.सा आदि ठाणा 09 का 18 मार्च को जंडियाला गुरु में प्रवेश होगा। गोडवाड़ भूषण, ज्ञान प्रभाकर,स्वर्ण संत आचार्य श्रीमद् जयानन्द सूरी जी म.स. (भोले बाबा) जैतपुरा के पास हाथलाई में विराजमान है। दार्शनिक ज्योतिष सम्राट आचार्य श्री मद् विजय यशोभद्र सूरीश्वर जी म.सा आदि ठाणा श्री कावरा (छोटा उदयपुर) में विराजमान है।

Tuesday, 28 February 2017

Vallabh Vatika Blessings Moment


चेन्नई में फरवरी माह की संक्रांति की सभा में *विश्व हिंदू परिषद के अंतराष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री बाल कृष्ण नायर* पूज्य *गच्छाधिपति गुरुदेव आचार्य भ.श्रीमद् विजय नित्यानन्द सूरि जी महाराज के संयम जीवन के 50वें वर्ष पर* गुरुदेव के उत्तम त्यागमय जीवन की अनुमोदना कर आशीर्वाद प्राप्त करते हुए..

Monday, 27 February 2017

Vallabh Vatika Golden Moments



चेन्नई - विजयवाड़ा हाई वे पर
श्री सुविधि वल्लभ विहार धाम के निर्माण हेतु भूमि समर्पित करने वाले पेरंबूर , चेन्नई के संघ अध्यक्ष श्री कन्हैया लाल जी पारेख शांतिदूत गच्छनायक गुरुदेव श्रीमद् विजय नित्यानन्द सूरि जी महाराज से पेरंबूर में प्रतिष्ठा के पश्चात् आनंदित क्षणों में आशीर्वाद का अमृत ग्रहण करते हुए..

Sunday, 26 February 2017

वल्लभ वाटिका नित्य विहार दर्शन

आज आंध्र प्रदेश में विहार के दौरान पंजाब केसरी आचार्य  श्रीमद् विजय वल्लभ सूरि जी महाराज के समुदाय के वर्तमान गच्छाधिपति शांतिदूत जैनाचार्य श्रीमद् विजय नित्यानंद सूरि जी महाराज के दर्शन वन्दन का लाभ आ.श्री नीति सूरि जी समुदाय की साध्वी वितरागदर्शिता श्री जी म.आदि ठाणा ने प्राप्त किया।

गुरुदेव ने उन्हें काकीनाडा में गुरु वल्लभ की प्रतिमा को पुनः स्थापित करवाने में महत्वपूर्व भूमिका निभाने पर साधुवाद दिया। साध्वी जी महाराज ने इस कार्य के लिए गुरु वल्लभ का ही अदृश्य चमत्कार माना।

Vallabh Vatika Bulletin

श्री आत्म-वल्लभ-समुद्र-इंद्रदिन्न-नित्यानंद सूरीश्वर जी पाट परंपरा के आज्ञानुवर्ती


ज्योतिष विद्वान आचार्य श्रीमद् विजय यशोभद्र सूरि जी म.सा आदि ठाणा 2 की निश्रा में 28 फरवरी 2017 को कावरा में भगवान मुनिसुव्रत स्वामी जिनमंदिर की 14वीं ध्वजारोहण बहुत धूमधाम से सम्पन्न होगा।

तत्त्वचिंतक पंन्यास चिदानंद विजय जी आदि ठाणा 2 प.पू. आचार्य जनकचन्द्र सूरि जी की कालधर्म भूमि - ईडर (गुजरात) की ओर विहार में हैं। आज दिनांक 26 फरवरी 2017 को वे सियावा (राज.) में पधारे एवं कुम्भारिया जी आदि तीर्थों की धर्मस्पर्शना करते हुए ईडर पधारेंगे।

कार्यदक्ष गणि श्री राजेंद्र विजय जी आदि ठाणा 2 गुजरात के परमार क्षत्रिय बहुल क्षेत्र - कवान्ट क्षेत्र में विचरण कर गुरु इंद्र के स्वप्न अनुरूप परमार क्षत्रियोद्धार के कार्यों को आगे बढ़ा रहे हैं।

शासनरत्ना साध्वी अमितगुणा श्री जी (माताजी महाराज) आदि ठाणा के सानिध्य में श्री सर्वतोभद्र तीर्थ, ओस्तरा (राज.) का ध्वजारोहण 8 मार्च 2017 को संपन्न होगा।

विदुषी साध्वी रत्नशीला श्री जी, साध्वी रत्नदर्शिता श्री जी आदि ठाणा 5 मुम्बई से विहार करके पुणे (महाराष्ट्र) में विराजमान हैं। दर्शन का लाभ लेवें।

साध्वी चंद्रयशा श्री जी, साध्वी पुनीतयशा श्री जी आदि ठाणा 2 का श्री विमलनाथ स्वामी जी की च्यवन-जन्म-दीक्षा-केवलज्ञान कल्याणक भूमि श्री कम्पिलपुरी तीर्थ में 2 तारीख को प्रवेश होगा एवं पावन निश्रा में 4 तारीख को जिनमंदिर की मांगलिक ध्वजारोहण का कार्यक्रम संपन्न होगा।

Saturday, 25 February 2017

Vallabh Vatika Chennai Highlights

श्री सुविधिनाथ जिनमंदिर पेरंबूर, चेन्नई
अंजनशलाका प्रतिष्ठा महोत्सव
13 से 18 फरवरी 2017

पंजाब केसरी आचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरि जी के समुदाय के वर्तमान गच्छाधिपति शांतिदूत जैनाचार्य श्रीमद्  विजय नित्यानंद सूरि जी महाराज साहिब आदि ठाणा का 13 फरवरी का पेरंबूर में श्री सुविधिनाथ जिनमंदिर की अंजनशलाका प्रतिष्ठा महोत्सव निमित्त भव्य प्रवेश हुआ।

शाम को च्यवन कल्याणक का विधान हुआ। 14,15 को जन्म कल्याणक से लेकर नवलोकांतिक देवों द्वारा प्रभु को दीक्षा की विनंती तक का मांत्रिक विधान और स्टेज prog सम्पन्न हुआ।

16 को प्रभु के दिक्षा कल्याणक का वरघोड़ा सम्पन्न हुआ। मध्य रात्रि में अधिवासना अंजन विधान हुआ। अंजन के तुरंत बाद मूलनायक प्रभु की प्रतिमा से अमिझरा प्रारम्भ हुआ।

 प्रातः शुभ मुहूर्त में ॐ पुण्याहं पुण्याहं की मन्त्र ध्वनियों में प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई।

चेन्नई महानगरी में 100 से ऊपर जिनालय है किंतु श्री सुविधिनाथ परमात्मा का ये प्रथम जिनालय बना है।
4 महीने में इस मंदिर का निर्माण करवाया गया।

प्रतिष्ठा विधान हेतु विधिकार जैन शासन गौरव श्री सुरेंद्र गुरु जी बेंगलोर से तथा संगीतकार मेहुल भाई रूपड़ा जालना से पधारे हुए थे ।

गुरुदेव की प्रेरणा से
श्री सुविधि वल्लभ युवा मंडल तथा
श्री सुविधि वल्लभ महिला मंडल की स्थापना की गयी।
संघ अध्यक्ष श्री कन्हैया लाल जी पारेख ने गुरुदेव की प्रेरणा से चेन्नई विजयवाड़ा हाई वे पर श्री सुविधि वल्लभ विहार धाम हेतु 3 ग्राउंड जमीन समर्पित की।

प्रतिष्ठा के बाद गुरुदेव को काम्बली ओढ़ाई गयी।

माँगलिक के बाद गुरुदेव नुंगमबाकम की और विजय मुहूर्त में वहां प्रतिष्ठा सम्पन्न करवाने हेतु विहार कर गए।

उल्लेखनीय है कि चेन्नई में 100 मंदिरों को आगे 108 की कड़ी तक पहुँचाने का सौभाग्य शांतिदूत गच्छनायक गुरुदेव को प्राप्त हुआ है।





Friday, 24 February 2017

जीवन परिचय

शासनपति भगवान श्री महावीर की परमोज्जवल पाट परम्परा के 73वें पट्टधर
न्यायाम्भोनिधि, जंगमयुगप्रधान, परम पूज्य आचार्य भगवंत श्री मद् विजयानंद सुरिश्वर जी म. सा.
(श्री आत्माराम जी म.सा.) का संक्षिप्त जीवन परिचय


दित्ता’ बने मुनि आत्माराम


पंजाब की गौरवमयी महकदार माटी, जिसमें पुरुषार्थ और पराक्रम के परमाणु भरे हैं, जहाँ के पंचनदीय पानी में भक्ति, शक्ति, समपर्ण, साहस और सेवा की लहरें मचल रही हैं, उस धरती पर जन्म लेने वालों का चमकदार गौरवपूर्ण, शोर्यशाली सुगठित शरीर, शक्तिशाली भुजाएँ, प्रभावशाली चेहरा शुद्ध आर्यवंशी होने की गवाही देता है इसी वीर पराक्रमी भूमि पर एक युगद्रष्टा सत्यशोधक ज्योतिधर साधु पुरूष ने जन्म लिया। फिरोजपुर के जीरा तहसील में एक छोटा सा सुंदर सुखी समृद्ध गाँव है, लहरा । वहां के निवासी क्षत्रिय वंशी गणेश चन्द्र जी की धर्मपत्नी माता रूपादेवी की कुक्षी से एक तेज़:स्फुलिंग ने जन्म लिया, जिसके प्रकाश से एक दिन सम्पूर्ण आर्यावर्त आलोकित हो उठा। अमेरिका, यूरोप तक उसकी दिव्य ज्ञान किरणों से सत्य का आलोक फैला दिया था। विं.सं. १८९४ चैत्र सुदि एकम नवरात्र का प्रथम शुभ दिन माता रूपादेवी ने जिस दिव्य नक्षत्र को जन्म, उसे आगे चलकर आत्माराम नाम से पहचाना गया।

जैन परिवार के संस्कारों में रहने और साधु-संतों के निकट सम्पर्क से क्षत्रिय वंशी आत्माराम में धीरे धीरे करुणा अहिंसा संयम और प्रभु भक्ति के संस्कार जागृत हुए। सत्संग से जीवन का रूपान्तरण होता है, यह बात चार वर्ष अल्पकालीन संत्संग से ही सिद्ध हो गयी। बालक आत्माराम १६ वर्ष का समझदार हुआ, तो उसने जैन साधु दीक्षा लेने की इच्छा प्रगट की। मालेरकोटला में उन दिनों स्थानकवासी जैन संत जीवन राम जी म.सा. पधारे थे। बालक आत्माराम की वैराग्य भावना देखकर और संतों की इच्छा जानकर जोधामल जी ने परिवारजनों से पूछकर आत्माराम को दीक्षा देने की आज्ञा दे दी। विं.सं. १९१० मार्ग शीर्ष सुदि पंचमी के दिन धूम धाम से बालक आत्माराम जैन मुनि आत्माराम बन गए। मुनि आत्माराम जी स्वभाव से ही ज्ञानपिपासु थे। सत्यशोधक वृति थी, संयम-तप-चारित्र और ज्ञान इस चतुर्मुखी साधना में आपने अपने आपको संलग्न कर दिया। गुरु जी ने संस्कृत-प्राकृत भाषा की व्याकरण पढाई। मुनि आत्माराम जी की ज्ञानाराधना में और भी तीव्रता आ गई। भाषा स्यां की कुंजी पाकर आगम ज्ञान की मंजूषा खोलने में दत्तचित्त हो गए। जैसे जैसे आगमों का स्वाध्याय, चिन्तन-मनन करते, उन्हें ज्ञान के बहुमूल्य मणि प्राप्त होते गए। ज्ञानं तृतीयं नेत्रं- ज्ञान मनुष्य का तीसरा नेत्र है। आगम चक्खुसाहू- साधु का तीसरा चक्षु है। आगम आगम ज्ञान से मुनि आत्माराम जी के अन्त चक्षु उद्घाटित हो गए। धर्म शास्त्र और जिन वाणी पर उन्हें अगाध श्रद्धा तो थी ही, साथ ही वे सत्य शोधक वृति के थे, आँख मीच कर बाबावाक्यं प्रमाणम कहने वाले अंध-श्रधालुओं में वर नहीं थे।
धर्म क्रांति का शंखनाद
मुनि आत्माराम जी ने धर्म शास्त्रों का गहरा अध्ययन- अनुशीलन किया तो उन्हें लगा- मैं जिस मार्ग पर चल रहा हूँ वह गलत तो नहीं है, परन्तु अपूर्ण, अधूरा है सत्य के एक पक्ष को पकड़ कर दुसरे को बिल्कुल ही नकार दिया गया है
परिणाम स्वरूप विं.सं. १९३१ में उन्होंने मुखवस्त्रिका’ मुहँ पर बाँधने की रूढ़ प्रथा छोड़ी, और १९३२ में आषाढ़ मास में जैन श्वेताम्बर मूर्ति पूजक परम्परा के वयोवृद्ध विद्वान संत श्री बुद्धि विजय जी म. (श्री बूटेराय जी म.सा.) के पास अन्य अनेक साथी श्रमणों के साथ अहमदाबाद में श्वेताम्बर जैन

संवेगी दीक्षा धारण की। मुनि आत्माराम अब मुनि आनंद विजय जी के नाम से प्रसिद्ध हो गए। पंजाब से मारवाड़, गुजरात सर्वत्र उनकी धर्म क्रांति की विजय दुंदुभी बज उठी।
मुनि आत्माराम जी ने देखा की मारवाड़, गुजरात सौराष्ट्र आदि क्षेत्रों में श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा का बहुत व्यापक प्रसार है, प्रभाव है। परन्तु पंजाब में मूर्ति पूजा और जिन मंदिर का बिल्कुल ही नगण्य प्रचार है। अनेक स्थानों पर प्रचीन जिन मंदिर बने हुए है, जो अपने गौरवमय अतीत के साक्षी है। परन्तु आज वे प्राय: जीर्ण शीर्ण दशा में है, और उनके दरवाजे बंद पड़े है। वहां पूजा अर्चा-भक्ति करने वाला कोई इक्का दुक्का व्यक्ति ही पहुँचता है। यह स्थिति देख कर उन्होंने संकल्प किया- मैं पंजाब में पुनरुद्धार करूँगा जिन मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाऊंगा। मूलरूप में शुद्ध प्रचीन जैन परम्परा का पुनरुज्जीवित करूँगा
आचार्य पद
विं. सं. १९४३ में आपने तिर्थाधिराज सिद्धगिरी शत्रुंजय में चातुर्मास किया। उस चातुर्मास में भारत भर से हजारों हजार लोग आपके दर्शनार्थ आयें सेकंडों श्री संघों ने आपको आचार्य पद ग्रहण करने की आग्रहभरी प्रार्थना की। कलकत्ता निवासी राय बहादुर बद्रीदास जी के नेतृत्व में समस्त जैन समुदायों की भाव भरी विनती और समय की मांग को देखते हुए आपने आचार्य पद स्वीकार किया। चातुर्मास पश्चात् मार्ग शीर्ष वदि ५ के शुभ मुहूर्त में लगभग ३५ हज़ार की विशाल जनमेदिनी के बीच अत्यंत उत्साह, उल्लास और आनंदपूर्वक मुनि आनंद विजय जी को आचार्य पद प्रदान किया गया। तपागच्छ की गौरवमयी पावन परम्परा में दीर्घ काल से चली आ रही एक कमी की संपूर्ति हुई।
इतिहास साक्षी है, भगवान महावीर के प्रथम पट्टधर गणधर सुधर्मा स्वामी की इस पवित्र पट्ट परम्परा में ६१वें पाट पर श्री विजय सिंह सूरि जी विराजमान थे। विं.सं. १७०८ में वे काल धर्म को प्राप्त हुए उसके पश्चात ११ पाट तक किसी को आचार्य पद नहीं दिया गया। २३५ वर्ष का लम्बा समय बिना आचार्य के ही बीता। विं.सं. १९४३ में काल चक्र ने पुन: करवट ली। भगवान सुधर्मा स्वामी के गण में उनके ७३वें पाट पर आचार्य श्री मद् विजय आनंद सुरिश्वर जी (आत्माराम जी म. सा.) जैसे शासन प्रभावक, ज्योतिधर्र आचार्य प्रतिष्ठित हुए। आप जैसे महान युगप्रवर्तक आचार्य के आगमन से सम्पूर्ण जैन संघ, धर्मसंघ और भगवान् महावीर की आचार्य परम्परा गौरवान्वित हुई। जैन संघ को एक उत्कृष्ट विद्वान, प्रखर व्याख्याता, उत्तम चारित्रपालक, दीर्घदर्शी, समर्थ धर्मनायक मिले। ऐसे आचार्य की प्राप्ति सम्पूर्ण जैन शासन के अभ्युदय और उत्कर्ष की प्रतीक बनी।

मुनिराज वल्लभ विजय जी के दूरदर्शी परामर्श से आचार्य श्री बहुत प्रभावित हुए और मुंबई से प्रसिद्ध बैरिस्टर जैन विद्वान श्री वीर चाँद जी राघव गाँधी को बुलाया गया। उन्हें जैन धर्म के सिद्धांतों व मूलभूत रहस्यों का प्रशिक्षण दिया तथा आचार्य श्री जी ने अपने विचारों को एक निबंध के रूप में लिख कर मुनि श्री विजय वल्लभ जी को दिया। उन्होंने उसकी स्वच्छ प्रतिलिपि करके श्री वीर चंद जी भाई को दी, जो चिकागो प्रश्नोतर के नाम से प्रसिद्ध है। आचार्य श्री जी का सन्देश लेकर वीर चंद भाई विश्वधर्म परिषद् में सम्मिलित हुए।

समयज्ञ आचार्य श्री विजयानंद सुरिश्वर जी म. सा. की यह प्रबल भावना थी कि पंजाब में जैन गुरुकुल, जैन कॉलेज आदि स्थापित हों शिक्षा के क्षेत्र में जैन समाज पिछड़ा हुआ है। उन्होंने इस दिशा में प्रयत्न प्रारम्भ किये गुजरांवाला में जैन गुरुकुल स्थापित करने की योजना बनी, परन्तु इस बीच आचार्य श्री जी का स्वास्थ्य कमजोर हुआ और विं.सं. १९५३ जेठ सुदि ७ रात्रि को गुजरांवाला में उनका स्वर्गवास हो गया।

जीवन की अंतिम विदाई से पूर्व आचार्य श्री जी ने अपने प्रतिभाशाली प्रिय प्रशिष्य मुनिराज वल्लभ विजय से कहा था- वल्लभ ! हमने पंजाब के गाँव गाँव में जिन मंदिरों का निर्माण तो कराया है, परन्तु इन मंदिरों में दर्शन सेवा पूजा करने वाले संस्कारी सुशिक्षित व्यक्तियों का निर्माण अधुरा ही रह गया है। यह काम तुझे करना है। गाँव गाँव में विध्या मंदिरों की स्थापना कर आने वाली पीढ़ी को शिक्षा संस्कार देने की तरफ तू प्रयत्न करना

तो ऐसे युगप्रवर्तक, करुणाशील, मानवता के परम हितेषी, सत्य के सुदृढ़ पक्षधर, चरित्रनिष्ठ आचार्य थे, श्री मद् विजयानंद सुरिश्वर इन्ही आचार्य श्री जी की छत्रछाया में किशोर छगन ने दीक्षा ग्रहण की और और मुनि विजय वल्लभ के रूप में प्रसिद्ध हुए।


Thursday, 9 February 2017

जीवन परिचय

शासनपति भगवान श्री महावीर की परमोज्जवल पाट परम्परा के 77 वें पट्टधर, तथा पंजाब केसरी गुरु वल्लभ समुदाय के वर्तमान गच्छाधिपति कल्याणतीर्थोद्धारकशासनदिवाकरशांतिदूत जैनाचार्य श्री मद् विजय नित्यानंद सुरिश्वर जी म.सा का संक्षिप्त
जीवन परिचय

नमामि नित्यं गुरु नित्यानंदमं

विश्व में सर्वत्र शांति, सद् भाव, सहयोग, राष्ट्रीय विचारधाराओं में आधायत्मिक अभिव्यक्ति के प्रखर प्रवक्ता, आत्म-वल्लभ दर्शन को आचरण से चरितार्थ कर वर्तमान भौतिकवाद की विभीषिका में सर्वत्र सर्वधर्म समभाव रख कर जन-जन के कल्याणार्थ चेतना व विकास का शंखनाद करने वाले जिनशासन के अगणित कार्यों को अत्यंत शांति सहजता व सरलता से पूर्ण करने वाले आचार्य भगवंत श्री मद् विजय नित्यानंद सुरिश्वर जी म.सा. के असाधारण व्यक्तित्व से कौन अपरिचित है ?
     
  भारत की राजधानी दिल्ली में धर्म परायणा श्री मति राजरानी की रत्न कुक्षी से विं. सं. २०१५ द्धितीय श्रावण वदि चतुर्थी को एक बालक जन्म लिया। पिता श्री चिमन लाल जी जैन के चमन में खिलने वाले इस पुष्प को प्रवीण का नाम मिला। अनिल, सुनील और प्रवीण तीनों पुत्रों से अपने भाग्य भंडार को भरा  माता पिता की ख़ुशी का पारावार न था। विख्यात महातीर्थ  श्री हस्तिनापुर जी में माँ की मीठी मीठी लोरियों के साथ सत्संस्कारों का शनेः शने संवर्धन होने लगा और पिता के प्रेम युक्त अनुशासन में जीवन का निर्माण प्रारम्भ हुआ। प्रत्युतपत्रमति, तीर्वमेधा और वाणी में माधुर्य के साथ साथ बड़ों के प्रति विनम्रता के गुण ने आप श्री को सभी प्रिय पात्र बना दिया था। आपके पिता श्री में एक ओर तो राष्ट्रीयता की भावना कूट- कूट कर भरी हुई थी थी तो दूसरी तरफ संसार प्रति निरासक्ति के भाव संन्यस्त जीवन जीने के लिए आकृष्ट कर रहे थे।

माता पिता के धर्म संस्कारों का सुधामृत पीने वाले तीनो ही बालकों पर भी संस्कार की विलासमय चकाचौंध का कोई प्रभाव नहीं पड़ सका। परिवार में जब दीक्षा की बात चली तो दोनों अग्रज भाइयों  स्वर को बल देते हुए आप श्री जी ने कहा कि यदपि हम छोटे बच्चें हैं परंतु संयम पालन में शूरवीर बन कर दिखाएंगे। बालक प्रवीण  अतिलघु अवस्था में अनेक गुणों को अपना लेना, हिताहित अंशों में भान जाना सचमुच ही महानता की निशानी थी। इसलिए कहा है - "होनहार बिरवान के होत चीकने पात।" बच्चों  की बलवती भावना देखकर माता-पिता भी विस्मित हो उठे। फलस्वरूप विं. सं. २०२४  मार्ग शीर्ष शुक्ला दशमी के शुभ दिन मात्र ९ वर्ष की अल्पायु उत्तर प्रदेश के बड़ौत नमक शहर में जिनशाशन रत्न शान्ततपोमूर्ति, राष्ट्र संत  आ. भ. श्री मद विजय समुंद्र सुरिश्वर जी  म. सा. के कर कमलों माता पिता, तीनों भाई तथा बाबा जी कुल ६ सदस्यों ने एक साथ भागवती प्रव्रज्या ग्रहण कर अपना जीवन स्व कल्याण हेतु समर्पित कर दिया। गुरु समुंद्र ने आप श्री को मुनि श्री विजय नाम प्रदान करके सांसारिक पिता मुनि श्री अनेकान्त विजय जी म. सा. का शिष्य घोषित किया।

गुरु समुद्र की कल्पतरुतुल्य शीतल छत्रछाया में बाल मुनियों का सर्वांगीण विकास प्रारम्भ हुआ। आपने संस्कृत, प्राकृत, न्याय, व्याकरण, साहित्य सहित जैनागमों  का तलस्पर्शी अध्ययन किया। बालवय में ही प्रवचनपटुता को प्राप्त आप श्री गुरु समुद्र के पत्र-व्यवहार  सम्पूर्ण  भार स्वयं सँभालते, यहाँ तक कि १३ वर्ष आयु में ही विविध विवादों के निर्णय गुर्वाज्ञा से देने लगे थे।  इस अपूर्व सेवा का लाभ आपने दस वर्षों तक उठाया। महातपस्वी मुनिराज श्री अनेकान्त विजय जी तो मौन पूर्वक लम्बी लम्बी तपश्चर्याओं में लीन गए थे तथा मात्र तीन वर्ष के संयम पर्याय में ही उनका कालधर्म हो गया था। पिता के असहय वियोग से तप्त आप श्री मानसभूमि को गुरु समुद्र के स्नेहसीकर से बहुत बल मिला तथा जब गुरु समुद्र अस्वस्थ हुए तो उन्होंने बालमुनियों की सार संभाल का दायित्व सर्वधर्मसमन्वयी, अध्यात्मयोगी पूज्य गणिवर्य श्री जनक विजय जी म. सा. को सौंपा। उनकी असीम अनुकम्पा एवं सर्वोत्कृष्ट प्रशिक्षण के फलस्वरूप आपके व्यक्तित्व में उतरोतर निखार आता चला गया।

समाजोत्कर्ष के विश्वकर्मा

गुरु इंद्र के भी निजी सचिव, प्रमुख सलाहकार के रूप में वर्षों तक कार्य करते हुए आपने समुदाय विकास के अनेकानेक कार्य किए। आपकी निर्णय लेने की क्षमता, विनय, विवेकसम्पन्ता, शासन सेवा की तीव्र उत्कण्ठा से अभिभूत होकर परमार क्षत्रियोंद्वारक चारित्र चूड़ा मणि आ. भ. श्री मद् विजय इन्द्रदिन्न सुरिश्वर जी म.सा ने आप श्री को विं.सं. 2044  में ठाणे में गणि पदवी एवं विं.सं. 2047   में विजय वल्लभ स्मारक दिल्ली में पन्यांस पदवी तथा विं.सं. 2050 में तीर्थाधिराज श्री शत्रुंजय तीर्थ पालीताणा में आचार्य पदवी से विभूषित करते हुए पंजाब आदि उत्तरी भारत के क्षेत्रों की देख रेख व सार संभाल का गुरुतर भार आप श्री को सौंपा था।

शांति व सद् भाव के अग्रदूत

शीतलता व तेजस्विता का दिव्य समन्वय आप श्री के स्वभाव में मौलिकरूप में है इसलिए जालना(महाराष्ट्र) में दो गुटों के विवाद को मार्मिक प्रवचन के माध्यम से सुलझाया और द्वेष के दावानल को प्रेम की गंगा से बुझाया। फलस्वरूप सकल श्री संघ ने मिल कर आप श्री जी को "शांतिदूत" पद से अलंकृत किया। इसी प्रकार श्री गंगानगर में श्री आत्म वल्लभ कन्या महाविद्यालय की स्थापना की प्रेरणा देकर नारी जाति के उत्कर्ष हेतु आप श्री जी ने महानीय कार्य किए, अतः वहां सकल श्री संघ द्वारा आपको 'शिक्षासंत' पद से नवाज़ा गया। पीलीबंगा, हनुमानगढ़, सूरतगढ़, नोहर भादरा आदि क्षेत्रों में वर्षों से बंद पड़े मंदिरों के जीर्णोद्धार के अगणित कार्य कराते हुए आप श्री ने अथक परिश्रम किया। परिणामतः आप श्री 'जीर्णोद्धार प्रेरक' के पद से अंलकृत किए गए। खोड़ चातुर्मास में जन जन के विकास व कल्याण के साथ शिक्षा के क्षेत्रों में किए गए क्रांतिकारी कार्यों के कारण ही 36 कौम के गणमान्य लोगों ने आप श्री को 'ज्ञानगंगा भागीरथ' पद से सुशोभित किया। आप श्री ने तीर्थ, मंदिर और धर्मसाधना केंद्रों को संस्कृति का रक्षक मानकर तीर्थोद्धार के विविध कार्य करवाए। फलस्वरूप 19 कल्याणकों की भूमि अयोध्या तीर्थ में अंजनशलाका प्रतिष्ठावसर पर सेठ आनंद जी कल्याण जी पेढ़ी के प्रमुख सेठ श्री श्रेणिक भाई की मानद उपस्थिति में सकल श्री संघ द्वारा 'कल्याण तीर्थोद्धारक' पद से विभूषित किया। गोडवाड़ के क्षेत्र के लाटाडा ग्राम में सक्रांति कार्यक्रम के मध्य स्थानकवासी सम्प्रदाय के  लोकमान्य संत प्रवर्तक  श्री रूपमुनि जी म.सा. ने आप श्री जी की स्वयं काम्बली ओढ़ाते हुए "पंजाब मार्तण्ड" पद से सम्मानित किया।

कोलकाता का अपूर्व चातुर्मास

प्रसन्नचित होकर प्रकृति देवी ने स्वभावत: ही शांति, विनम्रता शीतलता व वाणी में मधुरता आदि गुण आपको इस तरह प्रदान किए हैं, मानो आप शांति और सौम्यता की मुस्कुराती प्रतिमा है आप श्री के अभिनंदनीय सद् गुणों से आकृष्ट होकर दिगम्बराचार्य श्री पुष्पदंत सागर महाराज स्वयं उपाश्रय पहुंचे व विविध विषयों पर विचार विनिमय किया। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि श्री आत्म वल्लभ समुद्र इन्द्रदीन पाट परम्परा में आप ऐसे प्रथम आचार्य है जिन्होंने भारत के पूर्वी भू-भाग कोलकाता में चातुर्मास कर अभूतपूर्व जिनशासन का स्वर्णिम इतिहास रचा। आपने सम्मेदशिखर महातीर्थ में श्री श्वेताम्बर तपगच्छ दादावाड़ी, भगवान महावीर स्वामी की जन्मभूमि क्षत्रिय कुण्ड लछवाड़ में भगवान महावीर हॉस्पिटल  निर्माण आदि अनेक जिनशासन प्रभावना और समाज कल्याण कराए।

दक्षिण भारत का चमत्कारिक प्रवास

प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर के सम्पोषक व नवीन धारा के पुरस्कर्ता श्री शांतिदूत जी ने दक्षिण भारत प्रवास के दो वर्षों में पूज्य गुरुदेवों की यश:पताका को फहराने के साथ लोक कल्याण, साधर्मिक उतकर्ष, जीव दया, जिन शासन व परोपकार के  संपन्न करवाये जिनका विवरण करें तो एक ग्रन्थ ही बन जाए। लगभग १०० करोड़ के रचनात्मक कार्य संपन्न करवा कर आप जन जन की आस्था का केंद्र बन गए। विजयवाड़ा गुन्टूर राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित १९  वर्षों से निर्माणाधीन दक्षिण भारत मुकुटमणिसम श्री ह्रींकार महातीर्थ का निर्माण आप श्री के पुण्य प्रभाव से द्रुतगति से पुनः प्रारम्भ हुआ।  उसकी ए एतिहासिक अंजनशलाका प्रतिष्ठा पर लुधियाना से ८०० यात्री स्पैशल ट्रेन लेकर पहुंचे थे, उस विशेष अवसर पर तीर्थ ट्रस्ट द्वारा आपश्री जी को शासन प्रभावना के अनुमोदनार्थ "शासन दिवाकर" पद से सुशोभित किया गया।

स्वर्गारोहण अर्द्ध शताब्दी  का ऐतिहासिक आयोजन

समुदायवडील आचार्य भगवंत श्री मद विजय जनकचन्द्र सुरिश्वर जी महाराज साहिब  ने आपश्री को आदेश दिया कि पंजाब केसरी  जैनाचार्य श्री मद् विजय वल्लभ सुरिश्वर जी म. स. की स्वर्गारोहण अर्द्ध शताब्दी दिल्ली में राष्ट्रीय स्तर पर मनाने हेतु शीघ्र दक्षिण भारत से दिल्ली पहुंचे। आपने गुरु की आज्ञा शिरोधार्य कर दिल्ली पहुँच कर महोत्सव का ऐतिहासिक रूप देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उसी समय सुनामी की विभीषिका से संत्रस्त असंख्य परिवारों  कल्याणार्थ जैन समाज को प्रेरित का विशाल धनराशि एकत्रित  करवाकर भिजवाई।  इससे पूर्व लातूर, कच्छ से भूकम्प तथा जैसी राष्ट्रीय आपदाओं  के समय भी समाज को जागृत कर राष्ट्र सेवा का स्वर्णिम इतिहास रचा था।

पट्टधर पदवी

दिल्ली के वल्लभ स्मारक की पुण्य धरा पर वे क्षण तब अविस्मरणीय बन गए जब आप श्री ने समुदाय वडील के आशीर्वाद व देश के लगभग प्रत्येक संघ, महासभा व महासंघ की अत्यधिक आग्रहपूर्ण विनती स्वीकार कर समुदाय की बागडोर अपने हाथ  संभाली तथा श्री आत्म वल्लभ समुद्र इन्द्रदीन पाट परम्परा के क्रमिक पट्ट धर बने।  तत्पश्चात समाना चातुर्मास में चतुर्विध श्री संघ  आपश्री को "गच्छाधिपति" पद से अलंकृत किया। 

वरिष्ठ गुरुदेवों के प्रति समर्पण

जब आप मुनि थे तब से अपने वयोवृद्ध मुनिजनों के प्रति आप में विनय, सेवा व सम्मान सद् भावना रही है। सायरा में पन्यांस प्रवर श्री जयंत विजय जी म. स.  अभिनन्दन समारोह तथा ईडर में समुदाय वडिल जी के 81वें जन्म महोत्सव का भव्यतम आयोजन तथा उनके कालधर्म  उपरांत  भव्य समाधि मंदिर निर्माण, प्रतिष्ठा आदि कार्यों  संपन्न करवाना आपके व्यक्त्तिव को महान बनाता है। उल्लेखनीय है कि कच्छ (गुजरात) में श्री पार्श्व-वल्लभ-इन्द्रधाम  अंजनशलाका प्रतिष्ठा के अवसर पर आपने आ. भ. श्री विजय वसंत सूरि जी म.सा. "तप चक्रवर्ती", वयोवृद्धा साध्वी जगत श्री  जी म. सा. को 'शासन चन्द्रिका' अलंकरण प्रदान  कर एवं अहमदाबाद में  समुदाय की वरिष्टतम साध्वी श्री सुज्ञानश्री जी म. सा. एवं साध्वी श्री सुबुद्धि श्री जी म. सा. का 81वां जन्मदिन तथा संयम पर्याय अनुमोदनार्थ महामहोत्सव मनाकर वडिलों के प्रति अपना विनम्र कर्तव्य निभाया है। ईडर में समुदाय वडिल जी ने जिस प्रकार आपश्री को कांबली ओढ़ा कर वासक्षेप देकर पूज्य गुरुदेवो की और से शक्तिपात करते हुए आशीर्वाद दिया वह पूर्णरूपेण अविस्मरणीय था।