नमामि नित्यं गुरु नित्यानंदमं
विश्व में सर्वत्र शांति, सद् भाव, सहयोग, राष्ट्रीय विचारधाराओं में आधायत्मिक अभिव्यक्ति के प्रखर प्रवक्ता, आत्म-वल्लभ दर्शन को आचरण से चरितार्थ कर वर्तमान भौतिकवाद की विभीषिका में सर्वत्र सर्वधर्म समभाव रख कर जन-जन के कल्याणार्थ चेतना व विकास का शंखनाद करने वाले जिनशासन के अगणित कार्यों को अत्यंत शांति सहजता व सरलता से पूर्ण करने वाले आचार्य भगवंत श्री मद् विजय नित्यानंद सुरिश्वर जी म.सा. के असाधारण व्यक्तित्व से कौन अपरिचित है ?
भारत की राजधानी दिल्ली में धर्म परायणा श्री मति राजरानी की रत्न कुक्षी से विं. सं. २०१५ द्धितीय श्रावण वदि चतुर्थी को एक बालक जन्म लिया। पिता श्री चिमन लाल जी जैन के चमन में खिलने वाले इस पुष्प को प्रवीण का नाम मिला। अनिल, सुनील और प्रवीण तीनों पुत्रों से अपने भाग्य भंडार को भरा माता पिता की ख़ुशी का पारावार न था। विख्यात महातीर्थ श्री हस्तिनापुर जी में माँ की मीठी मीठी लोरियों के साथ सत्संस्कारों का शनेः शने संवर्धन होने लगा और पिता के प्रेम युक्त अनुशासन में जीवन का निर्माण प्रारम्भ हुआ। प्रत्युतपत्रमति, तीर्वमेधा और वाणी में माधुर्य के साथ साथ बड़ों के प्रति विनम्रता के गुण ने आप श्री को सभी प्रिय पात्र बना दिया था। आपके पिता श्री में एक ओर तो राष्ट्रीयता की भावना कूट- कूट कर भरी हुई थी थी तो दूसरी तरफ संसार प्रति निरासक्ति के भाव संन्यस्त जीवन जीने के लिए आकृष्ट कर रहे थे।
माता पिता के धर्म संस्कारों का सुधामृत पीने वाले तीनो ही बालकों पर भी संस्कार की विलासमय चकाचौंध का कोई प्रभाव नहीं पड़ सका। परिवार में जब दीक्षा की बात चली तो दोनों अग्रज भाइयों स्वर को बल देते हुए आप श्री जी ने कहा कि यदपि हम छोटे बच्चें हैं परंतु संयम पालन में शूरवीर बन कर दिखाएंगे। बालक प्रवीण अतिलघु अवस्था में अनेक गुणों को अपना लेना, हिताहित अंशों में भान जाना सचमुच ही महानता की निशानी थी। इसलिए कहा है - "होनहार बिरवान के होत चीकने पात।" बच्चों की बलवती भावना देखकर माता-पिता भी विस्मित हो उठे। फलस्वरूप विं. सं. २०२४ मार्ग शीर्ष शुक्ला दशमी के शुभ दिन मात्र ९ वर्ष की अल्पायु उत्तर प्रदेश के बड़ौत नमक शहर में जिनशाशन रत्न शान्ततपोमूर्ति, राष्ट्र संत आ. भ. श्री मद विजय समुंद्र सुरिश्वर जी म. सा. के कर कमलों माता पिता, तीनों भाई तथा बाबा जी कुल ६ सदस्यों ने एक साथ भागवती प्रव्रज्या ग्रहण कर अपना जीवन स्व कल्याण हेतु समर्पित कर दिया। गुरु समुंद्र ने आप श्री को मुनि श्री विजय नाम प्रदान करके सांसारिक पिता मुनि श्री अनेकान्त विजय जी म. सा. का शिष्य घोषित किया।
गुरु समुद्र की कल्पतरुतुल्य शीतल छत्रछाया में बाल मुनियों का सर्वांगीण विकास प्रारम्भ हुआ। आपने संस्कृत, प्राकृत, न्याय, व्याकरण, साहित्य सहित जैनागमों का तलस्पर्शी अध्ययन किया। बालवय में ही प्रवचनपटुता को प्राप्त आप श्री गुरु समुद्र के पत्र-व्यवहार सम्पूर्ण भार स्वयं सँभालते, यहाँ तक कि १३ वर्ष आयु में ही विविध विवादों के निर्णय गुर्वाज्ञा से देने लगे थे। इस अपूर्व सेवा का लाभ आपने दस वर्षों तक उठाया। महातपस्वी मुनिराज श्री अनेकान्त विजय जी तो मौन पूर्वक लम्बी लम्बी तपश्चर्याओं में लीन गए थे तथा मात्र तीन वर्ष के संयम पर्याय में ही उनका कालधर्म हो गया था। पिता के असहय वियोग से तप्त आप श्री मानसभूमि को गुरु समुद्र के स्नेहसीकर से बहुत बल मिला तथा जब गुरु समुद्र अस्वस्थ हुए तो उन्होंने बालमुनियों की सार संभाल का दायित्व सर्वधर्मसमन्वयी, अध्यात्मयोगी पूज्य गणिवर्य श्री जनक विजय जी म. सा. को सौंपा। उनकी असीम अनुकम्पा एवं सर्वोत्कृष्ट प्रशिक्षण के फलस्वरूप आपके व्यक्तित्व में उतरोतर निखार आता चला गया।
समाजोत्कर्ष के विश्वकर्मा
गुरु इंद्र के भी निजी सचिव, प्रमुख सलाहकार के रूप में वर्षों तक कार्य करते हुए आपने समुदाय विकास के अनेकानेक कार्य किए। आपकी निर्णय लेने की क्षमता, विनय, विवेकसम्पन्ता, शासन सेवा की तीव्र उत्कण्ठा से अभिभूत होकर परमार क्षत्रियोंद्वारक चारित्र चूड़ा मणि आ. भ. श्री मद् विजय इन्द्रदिन्न सुरिश्वर जी म.सा ने आप श्री को विं.सं. 2044 में ठाणे में गणि पदवी एवं विं.सं. 2047 में विजय वल्लभ स्मारक दिल्ली में पन्यांस पदवी तथा विं.सं. 2050 में तीर्थाधिराज श्री शत्रुंजय तीर्थ पालीताणा में आचार्य पदवी से विभूषित करते हुए पंजाब आदि उत्तरी भारत के क्षेत्रों की देख रेख व सार संभाल का गुरुतर भार आप श्री को सौंपा था।
शांति व सद् भाव के अग्रदूत
शीतलता व तेजस्विता का दिव्य समन्वय आप श्री के स्वभाव में मौलिकरूप में है इसलिए जालना(महाराष्ट्र) में दो गुटों के विवाद को मार्मिक प्रवचन के माध्यम से सुलझाया और द्वेष के दावानल को प्रेम की गंगा से बुझाया। फलस्वरूप सकल श्री संघ ने मिल कर आप श्री जी को "शांतिदूत" पद से अलंकृत किया। इसी प्रकार श्री गंगानगर में श्री आत्म वल्लभ कन्या महाविद्यालय की स्थापना की प्रेरणा देकर नारी जाति के उत्कर्ष हेतु आप श्री जी ने महानीय कार्य किए, अतः वहां सकल श्री संघ द्वारा आपको 'शिक्षासंत' पद से नवाज़ा गया। पीलीबंगा, हनुमानगढ़, सूरतगढ़, नोहर भादरा आदि क्षेत्रों में वर्षों से बंद पड़े मंदिरों के जीर्णोद्धार के अगणित कार्य कराते हुए आप श्री ने अथक परिश्रम किया। परिणामतः आप श्री 'जीर्णोद्धार प्रेरक' के पद से अंलकृत किए गए। खोड़ चातुर्मास में जन जन के विकास व कल्याण के साथ शिक्षा के क्षेत्रों में किए गए क्रांतिकारी कार्यों के कारण ही 36 कौम के गणमान्य लोगों ने आप श्री को 'ज्ञानगंगा भागीरथ' पद से सुशोभित किया। आप श्री ने तीर्थ, मंदिर और धर्मसाधना केंद्रों को संस्कृति का रक्षक मानकर तीर्थोद्धार के विविध कार्य करवाए। फलस्वरूप 19 कल्याणकों की भूमि अयोध्या तीर्थ में अंजनशलाका प्रतिष्ठावसर पर सेठ आनंद जी कल्याण जी पेढ़ी के प्रमुख सेठ श्री श्रेणिक भाई की मानद उपस्थिति में सकल श्री संघ द्वारा 'कल्याण तीर्थोद्धारक' पद से विभूषित किया। गोडवाड़ के क्षेत्र के लाटाडा ग्राम में सक्रांति कार्यक्रम के मध्य स्थानकवासी सम्प्रदाय के लोकमान्य संत प्रवर्तक श्री रूपमुनि जी म.सा. ने आप श्री जी की स्वयं काम्बली ओढ़ाते हुए "पंजाब मार्तण्ड" पद से सम्मानित किया।
कोलकाता का अपूर्व चातुर्मास
प्रसन्नचित होकर प्रकृति देवी ने स्वभावत: ही शांति, विनम्रता शीतलता व वाणी में मधुरता आदि गुण आपको इस तरह प्रदान किए हैं, मानो आप शांति और सौम्यता की मुस्कुराती प्रतिमा है आप श्री के अभिनंदनीय सद् गुणों से आकृष्ट होकर दिगम्बराचार्य श्री पुष्पदंत सागर महाराज स्वयं उपाश्रय पहुंचे व विविध विषयों पर विचार विनिमय किया। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि श्री आत्म वल्लभ समुद्र इन्द्रदीन पाट परम्परा में आप ऐसे प्रथम आचार्य है जिन्होंने भारत के पूर्वी भू-भाग कोलकाता में चातुर्मास कर अभूतपूर्व जिनशासन का स्वर्णिम इतिहास रचा। आपने सम्मेदशिखर महातीर्थ में श्री श्वेताम्बर तपगच्छ दादावाड़ी, भगवान महावीर स्वामी की जन्मभूमि क्षत्रिय कुण्ड लछवाड़ में भगवान महावीर हॉस्पिटल निर्माण आदि अनेक जिनशासन प्रभावना और समाज कल्याण कराए।
दक्षिण भारत का चमत्कारिक प्रवास
प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर के सम्पोषक व नवीन धारा के पुरस्कर्ता श्री शांतिदूत जी ने दक्षिण भारत प्रवास के दो वर्षों में पूज्य गुरुदेवों की यश:पताका को फहराने के साथ लोक कल्याण, साधर्मिक उतकर्ष, जीव दया, जिन शासन व परोपकार के संपन्न करवाये जिनका विवरण करें तो एक ग्रन्थ ही बन जाए। लगभग १०० करोड़ के रचनात्मक कार्य संपन्न करवा कर आप जन जन की आस्था का केंद्र बन गए। विजयवाड़ा गुन्टूर राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित १९ वर्षों से निर्माणाधीन दक्षिण भारत मुकुटमणिसम श्री ह्रींकार महातीर्थ का निर्माण आप श्री के पुण्य प्रभाव से द्रुतगति से पुनः प्रारम्भ हुआ। उसकी ए एतिहासिक अंजनशलाका प्रतिष्ठा पर लुधियाना से ८०० यात्री स्पैशल ट्रेन लेकर पहुंचे थे, उस विशेष अवसर पर तीर्थ ट्रस्ट द्वारा आपश्री जी को शासन प्रभावना के अनुमोदनार्थ "शासन दिवाकर" पद से सुशोभित किया गया।
स्वर्गारोहण अर्द्ध शताब्दी का ऐतिहासिक आयोजन
समुदायवडील आचार्य भगवंत श्री मद विजय जनकचन्द्र सुरिश्वर जी महाराज साहिब ने आपश्री को आदेश दिया कि पंजाब केसरी जैनाचार्य श्री मद् विजय वल्लभ सुरिश्वर जी म. स. की स्वर्गारोहण अर्द्ध शताब्दी दिल्ली में राष्ट्रीय स्तर पर मनाने हेतु शीघ्र दक्षिण भारत से दिल्ली पहुंचे। आपने गुरु की आज्ञा शिरोधार्य कर दिल्ली पहुँच कर महोत्सव का ऐतिहासिक रूप देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उसी समय सुनामी की विभीषिका से संत्रस्त असंख्य परिवारों कल्याणार्थ जैन समाज को प्रेरित का विशाल धनराशि एकत्रित करवाकर भिजवाई। इससे पूर्व लातूर, कच्छ से भूकम्प तथा जैसी राष्ट्रीय आपदाओं के समय भी समाज को जागृत कर राष्ट्र सेवा का स्वर्णिम इतिहास रचा था।
पट्टधर पदवी
दिल्ली के वल्लभ स्मारक की पुण्य धरा पर वे क्षण तब अविस्मरणीय बन गए जब आप श्री ने समुदाय वडील के आशीर्वाद व देश के लगभग प्रत्येक संघ, महासभा व महासंघ की अत्यधिक आग्रहपूर्ण विनती स्वीकार कर समुदाय की बागडोर अपने हाथ संभाली तथा श्री आत्म वल्लभ समुद्र इन्द्रदीन पाट परम्परा के क्रमिक पट्ट धर बने। तत्पश्चात समाना चातुर्मास में चतुर्विध श्री संघ आपश्री को "गच्छाधिपति" पद से अलंकृत किया।
वरिष्ठ गुरुदेवों के प्रति समर्पण
जब आप मुनि थे तब से अपने वयोवृद्ध मुनिजनों के प्रति आप में विनय, सेवा व सम्मान सद् भावना रही है। सायरा में पन्यांस प्रवर श्री जयंत विजय जी म. स. अभिनन्दन समारोह तथा ईडर में समुदाय वडिल जी के 81वें जन्म महोत्सव का भव्यतम आयोजन तथा उनके कालधर्म उपरांत भव्य समाधि मंदिर निर्माण, प्रतिष्ठा आदि कार्यों संपन्न करवाना आपके व्यक्त्तिव को महान बनाता है। उल्लेखनीय है कि कच्छ (गुजरात) में श्री पार्श्व-वल्लभ-इन्द्रधाम अंजनशलाका प्रतिष्ठा के अवसर पर आपने आ. भ. श्री विजय वसंत सूरि जी म.सा. "तप चक्रवर्ती", वयोवृद्धा साध्वी जगत श्री जी म. सा. को 'शासन चन्द्रिका' अलंकरण प्रदान कर एवं अहमदाबाद में समुदाय की वरिष्टतम साध्वी श्री सुज्ञानश्री जी म. सा. एवं साध्वी श्री सुबुद्धि श्री जी म. सा. का 81वां जन्मदिन तथा संयम पर्याय अनुमोदनार्थ महामहोत्सव मनाकर वडिलों के प्रति अपना विनम्र कर्तव्य निभाया है। ईडर में समुदाय वडिल जी ने जिस प्रकार आपश्री को कांबली ओढ़ा कर वासक्षेप देकर पूज्य गुरुदेवो की और से शक्तिपात करते हुए आशीर्वाद दिया वह पूर्णरूपेण अविस्मरणीय था।
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