* कल्याणक तीर्थोद्धारक, शासन दिवाकर, पंजाब मार्तण्ड, गच्छाधिपति शांतिदूत जैनाचार्य श्री मद् विजय नित्यानंद सूरि जी म.सा, तप केसरी तपस्वी सम्राट आचार्य भगवन श्री मद् विजय वसंत सूरि जी म.सा आदि ठाणा 09 का 18 मार्च को जंडियाला गुरु में प्रवेश होगा। गोडवाड़ भूषण, ज्ञान प्रभाकर,स्वर्ण संत आचार्य श्रीमद् जयानन्द सूरी जी म.स. (भोले बाबा) जैतपुरा के पास हाथलाई में विराजमान है। दार्शनिक ज्योतिष सम्राट आचार्य श्री मद् विजय यशोभद्र सूरीश्वर जी म.सा आदि ठाणा श्री कावरा (छोटा उदयपुर) में विराजमान है।

Wednesday, 15 March 2017

जिज्ञासा 4

"स्थापनाचार्य का रहस्य"

श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संप्रदाय के किसी भी साधु साध्वी जी के पास चले जाओ, सभी के पास स्थापनाचार्य जी दिखाई देते हैं। वो सभी क्रिया स्थापनाचार्य के आगे ही करते हैं। लेकिन क्या हमने कभी विचार किया कि आखिर ऐसा क्यों??

एक व्यक्ति विश्व में किसी से भी झूठ बोल सकता है लेकिन अपने गुरु से झूठ नहीं बोल सकता। उनमें भी उपकारी वडील गुरु भगवंतों के समक्ष व्यक्ति कुछ भी गलत नहीं कर सकता है। 

साधु साध्वी जी उस हेतु से भगवान् महावीर स्वामी जी के पांचवे गणधर शिष्य एवं पहले पट्टधर गुरुदेव - श्री सुधर्म स्वामी जी की साक्षी से ही सब क्रियाएं करते हैं। वर्तमान का समग्र श्रमण परिवार उनकी ही संतान है इसलिए अपने वडील गुरुदेव की साक्षी में ही सब क्रिया की जाती है।

वे स्थापनाचार्य ही नहीं, बल्कि साक्षात् सुधर्म स्वामी जी हैं, इस भाव से साधु साध्वी जी भगवंत रहते हैं। गलती से भी गलती न हो जाये और सामने गुरु हमेशा दिखाई देते रहे, उनके अस्तित्व की अनुभूति महसूस की जाये, ऐसा चिंतन हमारे साधु साध्वी जी का होता है।

स्थापनाचार्य के अंदर क्या होता है?
स्थापनाचार्य जी के अंदर तीर्थंकर की प्रतिमा, छोटी माला आदि कई सामग्रियां हो सकती हैं। लेकिन जो मूल रूप से स्थापनाचार्य जी में होते हैं - वह है पांच दक्षिणावर्ती शंख !

गणधर सुधर्म स्वामी जी के देह पर 5 दक्षिणावर्ती शंख (उत्तम जाति के शंख) के चिन्ह थे और वो परमात्मा के पांचवे गणधर ही थे! इस निमित्त से 5 शंख रखकर सुधर्म स्वामी जी स्थापित हैं, ऐसा अटूट विश्वास रखा जाता है।

हम भी जब सामायिक प्रतिक्रमण करते हैं (करना तो प्रतिदिन ही चाहिए लेकिन कम से कम संवत्सरी पर तो सब ही करते हैं), क्या हम स्थापना जी में परम उपकारी गुरुदेव सुधर्म स्वामी जी की अनुभूति करते हैं? यदि वह अनुभूति होगी तो हर खमासमण देते हुए गुरु सामने खड़े हैं और हम उनका विनय कर रहे हैं, ऐसे विचार खुद-ब-खुद आएंगे और फिर क्रिया बोरिंग न रहकर संयम धर्म के प्रति अहोभाव का कारण बनेगी।


(पंन्यास चिदानंद विजय जी के प्रवचनों से संगृहीत )

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